निंदक या शिक्षक?

निंदक या शिक्षक?

स्नेही की तरफ आकर्षित होना और निंदा करने वालो से दूर रहना, यह मानव का स्वभाव हैं! डाटने वाले शिक्षक को बच्चे पसंद नाहीं करते! निंदा करने वाले पती से पत्नी संबंध विच्छेद मांगती है ! निष्ठुर अधिकारी के साथ कोई काम करना नहीं चाहता! कटू बोलने वाले को अपना मित्र कोई नहीं बनाता! जिसका पडोसी निंदक है, वह सदा दुखी रहता है! निंदा एक ऐसा वर्जनीय विषय हे जिसका मानव जिवन में कोई स्थान नहीं और निंदक का इस समाज में भी कोई स्थान नहीं! सभी चाहते है कि उनकी प्रशंसा हो! कोई कितना भी दुखी क्यों न हो, प्रशंसा सुनते हि मन प्रसन्न होकार मुख खिल जाता है! प्रशंसक का सदा आदर होता है! प्रशंसा करने वाले जीवन साथी मिलें, तो हम जीवन को धन्य समझते है! लेकीन लोकोक्ती कहती हैं, 'निंदा हमारे जो करे मित्र हमारा सो' न की 'प्रशंसा हमारी जो करे मित्र हमारे सो!' साधना के मार्ग पर साधक को एक खुबसुरत मूर्ती बनाने वाला शिल्पी वास्तव में निंदक है, न की प्रशंसक!                                                     निंदक के अंदर छिपे शिक्षक को पहचानने के लिये हमें दृष्टीकोण को नकारात्मक से सकारात्मक में बदलना होगा! जिस बात से हम डरते रहते हैं या दुखी रहते हैं, जिस से मुक्ति पाना चाहते हैं वह वस्तु हमारे लिये बहुत ही लाभदायक हो सकती है किंतू हमें पता नहीं रहता है! पता तब चलता है तब हम उस बात को देखने का दृष्टीकोण बदलते हैं!                                                                                                         एक किसान के खेत में एक भाग ही जमीन थी और तीन भाग तो बडी चट्टान फैली हुई थी! किसान इस बात को लेकर बहुत दुखी रहता था क्योकि घर--परिवार को संभालने के लिये वह जमीन बहुत ही कम थी! एक दिन उसने सोचा, अगर इस चट्टान को तोडकर रोडी और  कंकर बनाने दिये जाये तो कितनी इमारते बन सकती है! तुरंत ही उसने इमारत बनाने वालों को बुलाकर चट्टान को बेचने की बात की और काम शुरू हो गया! जिस घर में रोटी बननी मुश्किल थी, वहा कुछ ही दिनो में सोने- चांदी के गहने दिखने लगे! वही किसान और वही चट्टान, फिर गरीबी बदलकर अमीरी कैसे आ गई? कारण था, दृष्टीकोण! नकारात्मक दृष्टीकोण के कारण जो बेहद समस्या के रूप में दिख रहा था, वही बेहद समाधान बन गया जब उसको सकारात्मक दृष्टीकोण से देखा गया! महा पुरुषो की विशेषता यही रही की जीवन को देखने का उनका दृष्टीकोण अलग ही था! उस दृष्टीकोण द्वारा निंदा, अपमान, विघ्न, समस्या आदि रुकावटो के बजाय सफलता की सीढी उनको नजर आती रही! इसी विशेषता ने उनको महान बनाया

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